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सामञ्जस्य और सद्भावना
सामञ्जस्य
सामञ्जस्य : आओ, हम प्रयास करें कि वह दिन आये जब यही साधन हो और यही साध्य ।
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सामञ्जस्य मेरा लक्ष्य है और जो भी चीज सामज्जस्य की ओर ले जाती है वह मुझे प्रसन्न करती है ।
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सर्वांगीण सामञ्जस्य : वस्तुओं के बीच सामञ्जस्य, लोगों के बीच सामञ्जस्य, परिस्थितियों का सामञ्जस्य ओर सबसे बढ़कर 'परम सत्य' की ओर अभिमुख सभी अभीप्साओं का सामञ्जस्य ।
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सामञ्जस्यपूर्ण सामूहिक अभीप्सा परिस्थितियों की दिशा को बदल सकती है ।
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सामूहिक सामञ्जस्य वह कार्य है जिसे 'भागवत चेतना' ने अपने हाथ में लिया है, केवल उसी में वह शक्ति है जो इसे चरितार्थ कर सके ।
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एक गहरी और सत्य चेतना है जिसमें सभी प्रेम तथा सामञ्जस्य के साथ मिल सकते हैं ।
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केवल भगवान् के साथ ऐक्य में और भगवान् के अन्दर ही सामञ्जस्य
२०३ और शान्ति की स्थापना हो सकती है । २० जुलाई, १९३५
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निश्चय ही हमें शान्ति और सामञ्जस्य की चाह करनी चाहिये और उसके लिए यथासम्भव अधिक-से-अधिक काम करना चाहिये--लेकिन उसके लिए उत्तम कार्यक्षेत्र हमेशा हमारे अन्दर होता है ।
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असामञ्जस्य के बाहरी कारणों की अपेक्षा अधिक खोज करो आन्तरिक कारणों की । अन्तर ही बाह्य पर शासन करता है । ४ जुलाई, १९६६
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चिन्तित या अधीर मत होओ--सभी असामञ्जस्य विलीन हो जायेंगे, लेकिन ऐसा एक टिकी हुई ज्योतिर्मयी चेतना के सच्चे आधार पर होगा जिसमें अहं के खेलने के लिए कोई स्थान न हो ।
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सबकी सहमति के लिए हर एक को अपनी चेतना के शिखर तक उठना होगा : शिखरों पर ही सामञ्जस्य का सृजन होता है । अप्रैल १९७०
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तुम्हें अपनी चेतना में इतना ऊपर उठ जाना चाहिये कि वह विरोध पर छा जाये । यही हल है । ४ मार्च, १९७१
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